गाज़ीपुर।अपनी लेखनी के दम पर दुनियां में एक अलग मुकाम हासिल करने वाले राष्ट्रगान के रचयिता गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर का प्रवास गाज़ीपुर जनपद में छः माह से ऊपर रहा है।प्रवास के दौरान 'मानसी' की अधिकांश कविताएं व 'नौका डूबी' का एक तृतीयांश गाज़ीपुर पर ही केंद्रित करके लिखे थे। 24 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान द्वारा अंगीकृत किया गया राष्ट्रगान 'जनगण मन अधिनायक जय हे' के रचयिता गुरुदेव रविन्द्र नाथ सन 1888 में 37 वर्ष की आयु में गाज़ीपुर जनपद आये थे।वह हाबड़ा से दिलदारनगर ट्रेन से आये ततपश्चात दूसरी गाड़ी बदलकर ताड़ीघाट स्टेशन आये।वहाँ से स्टीमर द्वारा गंगा पार करने के बाद इक्का गाड़ी से गोराबाजार पहुँचे थे।गोराबाजार स्थित रविन्द्रपुरी कालोनी का नाम उन्हीं के नाम पर पड़ा है। भरतीय संस्कृति चेतना में नई जान फूंकने वाले युगदृष्टा नोबल पुरस्कार विजेता रविन्द्रनाथ का नाम विश्व में बहुत आदर के साथ लिया जाता है।इनकी दो रचनाएं दो देशों में राष्ट्रगान के रूप में गायी जाती है।भारत में जनगण मन तो बांग्लादेश में 'अमार सोनार बँग्ला' के रूप में गाया जाता है। मूलतः बांग्ला भाषा में लिखा राष्ट्रगान 27 दिसम्बर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पहली बार बँग्ला और हिन्दी भाषा में गाया गया था।इनमें पांच पद है और इसे 52 सेकेण्ड में गाया जाता है। अंग्रेजी भाषा में लिखी इनकी रचना गीतांजली पर गुरुदेव को 1913 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।शांति निकेतन की नींव इनके द्वारा 1921 में रखी गई थी।जिसे विश्व भारती यूनवर्सिटी के नाम से जाना जाता था। विश्व धर्मसंसद को दो बार सम्बोधित करने वाले महान कवि, लेखक, नाटककार, संगीतकार व चित्रकार गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की मृत्यु प्रोस्टेट कैंसर के कारण हुई थी।जिनका नाम गाज़ीपुर जनपद वासी आज भी पूरी श्रद्धा के साथ लेते है।
विनीत दुबे के फेसबुक वॉल से
28-03-2024 17:17:41